Sunday, August 26, 2012

मूल्य विहीन होता भारतीय समाज

  मूल्य विहीन होता भारतीय समाज 


एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मना.........ये पंक्ति पुरातन समय में हमारे भारतीय समाज का अवलोकन कराती थी क्योंकि हमारे तत्त्वदर्शी मनीषियों ने इस संसार की वास्तविकता को तब जान लिया था जब सारा संसार ज्ञान शब्द से भी अपरिचित था उन्होंने अपने गंभीर चिंतन  से निष्कर्ष निकाला  कि ये संसार मिथ्या है इस में लोभ मद मात्सर्य हिंसा {वाचिक ,मानसिक शारीरिक } इत्यादि दुःख के कारण विद्यमान हैं जब तक मनुष्य इन से दूर नहीं होगा तब तक उसका कल्याण नहीं होगा अतः उम्होने कुछ नियम इस हेतु निर्धारित किये जिनसे मनुष्य को कुछ शांति अनुभव हो और वो अपने वास्तविक प्राप्तव्य को प्राप्त कर सके 



१. सारा संसार उसी परब्रह्म का स्वरूप है अतः किसी से भी वैमनस्य ना रखें 

२.  फल कि चिंता ना करते हुए कर्म करो 

३.  चरित्र कि सर्वात्मना रक्षा करो इसके नष्ट होते ही सब कुछ नष्ट होगा इसमें संशय नही 

                                                                                     अपनी ओर से किसी को भी कष्ट ना दो ,हिंसा से दूर रहो ,  किसी का बुरा ना करो , किसी के अंश को मत खाओ , चोरी मत करो ,  पिशुनता का त्याग करें , किसी  के दुःख का कारण ना बनो , इत्यादि लेकिन काल का चक्र ऐसा घूमा कि हम अपने उस पुराने गौरव को विस्मृत कर चुके हैं  हमें अपने ही मूल सिद्धांतों से चिढ होती है  हम उन चीजों को अपनाना श्रेयस्कर समझते हैं जो पश्चिम देशों में होता है आज का भारतीय समाज अपने मूल्यों कि अवमानना में अपना गौरव अनुभव करता है  आदर्श नाम का शब्द आज पग पग पर नष्ट हो रहा है 
                                        नैतिकता ,सत्य अहिंसा शुद्धता संतोष आत्मसंयम , आत्मानुशासन ,करुणा ,साहस              
  दया अनुशासन धैर्य निष्ठां सेवा इत्यादि मानवीय मूल्य आज कराह रहे हैं फिर भी हम उनकी रक्षा को तैयार नहीं हैं जबकि ये सत्य है कि जिस समाज ने अपनी विरासत में प्राप्त मूल्यों से दूरी बढाई है वो नष्ट ही हुए हैं ....

                     मूल्यों के इस संक्रमण युग में हमें अपने मूल्यों की रक्षा करना आवश्यक है आज पूरे देश में हर क्षेत्र में जैसे राजनीति सामजिकता पत्रकारिता सर्वत्र मूल्य हीनता ही दिखाई देती है किसी को भी समाज देश से कोई मतलब नहीं है अंधानुकरण कि प्रवृत्ति ने हमे कहीं का नहीं छोड़ा आज आवश्यकता है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने मूल्यों के संरक्षण हेतु कटिबद्ध हो ओर ये बातें अपने पाल्यों को जन्म से ही इनकी शिक्षा दें  क्योंकि जिस इमारत की नीव मजबूत होती है वो उतनी ही शक्तिशाली होती है संस्कार खिन से खरीदे नहीं जाते प्रत्युत वो सिखाए जाते हैं १ पीढ़ी से दूसरी में वो हस्तांतरित होते हैं ..........

                    अतः अपने देश समाज को बचने हेतु यदि हम अभी नहिं तत्पर नही हुए तो १ दिन हम भी अन्य संस्कृतियों की तरह नष्ट हो जायेंगे ...............................